मैं समझता हूं कि मायावती बनेगी।
एक कहानी याद आ गई, शायद पंचतंत्र की है। दो बिल्लियों को रोटी का टुकड़ा मिला, पर वे झगड़ने लगे कि किसे उसका कितना हिस्सा मिलेगा। वे मध्यस्थ करने एक बंदर के पास गए। बंदर ने पहले रोटी को दो टुकड़ों में फाड़ा, एक बड़ा एक छोटा। फिर बड़े में से एक बहुत बड़ा हिस्सा मुंह से काटकर खुद खा गया। अब पहले का बड़ा टुकड़ा छोटा हो गया। बंदर ने अब पहले के छोटे टुकड़े में से एक बहुत बड़ा टुकड़ा खा लिया... इस तरह सारी रोटी बंदर ही खा गया और बिल्लियों को कछ न मिला।
बिल्लियों की जगह कांग्रेस और भाजपा पढ़ें, और बंदर की जगह भासपा, तो बात आपको समझ में आ जाएगी।
मायावती यदि 60-70 सीटें जीत जाएं, तो उन्हें प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। और लगता यही है कि उन्हें इतनी सीटें जरूर मिल जाएंगी।
कांग्रेस या भाजपा के पास इस बार कोई दमदार चुनावी मुद्दा नहीं है। उनके गठबंधन बिखर गए हैं। और मायावती उनकी गलतियों का खूब लाभ उठा रही है।
वरुण को द्वेषपूर्ण भाषण देने के लिए रासुका के तहत जेल भेज देना मायावती का मास्टरस्ट्रोक था। इससे मायावती तुरंत मुसलमानों का मसीहा बन गई और समाजवादी पार्टी से मुसलमानों को अपनी ओर खींच लाने में कामयाब हुई।
समाजवादी पार्टी अब तक मुसलमानों का मसीहा बताता घूम रहा था, पर कल्याण सिंह को अपनी पार्टी में शामिल करके उसके इस दावा का खोखलापन लोगों को स्पष्ट हो गया है। इसलिए मुसलमान पहले से ही समाजवादी पार्टी से खिन्न चले आ रहे थे।
मायावती ने दलित-ब्राह्मण-मुसलमान का एक विजयी तिकोन बना लिया है, और अधिकांश दलितों की मंशा भी यही है कि अब की बार देश का प्रधान मंत्री उन्हीं में से कोई हो। पासवान की तुलना में उन्हें मायवती के जीतने की संभावना ज्यादा नजर आ रही है, इसलिए मायावती को खूब वोट मिलेंगे, और संभवतः वह दिल्ली जीत सकेगी।
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